चिंता की मार - बोधकथा
Chinta Ki Mar Bodh Katha in Hindi
Moral Story in Hindi
दो वैज्ञानिक बातचीत कर रहे थे। उनमें एक वृद्ध और एक युवा था। वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 'चाहे विज्ञान कितनी भी प्रगति क्यों न कर ले, लेकिन वह अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं ढूंढ पाया, जिससे चिंता पर लगाम कसी जा सके।' युवा वैज्ञानिक मुस्कराते हुए बोला, 'आप भी कैसी बातें करते हैं। अरे चिंता तो मामूली सी बात है। भला उसके लिए उपकरण ढूंढने में समय क्यों नष्ट किया जाए?' वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 'चिंता बहुत भयानक होती है। यह व्यक्ति का सर्वनाश कर देती है ।' लेकिन युवा वैज्ञानिक उनसे सहमत नहीं हुआ।
वृद्ध वैज्ञानिक उसे अपने साथ घने जंगलों की ओर ले गए। एक विशालकाय वृक्ष के आगे वे खड़े हो गए। युवा वैज्ञानिक बोला, 'आप मुझे यहां क्यों लाए हैं?' वृद्ध वैज्ञानिक ने कहा, 'जानते हो, इस वृक्ष की उम्र चार सौ वर्ष बताई गई है।' युवा वैज्ञानिक बोला, 'अवश्य होगी।' वृद्ध वैज्ञानिक ने समझाते हुए कहा, 'इस वृक्ष पर चौदह बार बिजलियां गिरी। चार सौ वर्षों से अनेक तूफानों का इसने सामना किया।' अब युवा वैज्ञानिक ने झुंझला कर कहा, 'आप साबित क्या करना चाहते हैं?'
वृद्ध वैज्ञनिक बोले, 'धैर्य रखो। यहां आओ और देखो कि इसकी जड़ में दीमक लग गया है। दीमक ने इसकी छाल को कुतर-कुतर कर तबाह कर दिया है।' युवा वैज्ञानिक ने पूछा, 'अब निष्कर्ष तो बताइए।' वृद्ध वैज्ञानिक बोले, 'जिस तरह यह विशाल वृक्ष बिजली से नष्ट नहीं हुआ, तूफान से धराशायी नहीं हुआ लेकिन मामूली दीमक उसे चट कर गया, उसी तरह चिंता का दीमक भी एक सुखी-समृद्ध और ताकतवर व्यक्ति को चट कर जाता है।' युवा वैज्ञानिक उनसे सहमत हो गया।
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